पाक, सऊदी-कुवैत…वक्फ बिल पर कैसे मोदी सरकार ने दिन-रात काम किया, क्यों 370 हटाने जैसा है यह दांव? जानिए

1995 के वक्फ एक्ट में संशोधन और 1923 के मुसलमान वक्फ एक्ट को रद्द करना भाजपा के वैचारिक एजेंडे का हिस्सा है. यह ठीक वैसे ही है, जैसे जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को हटाना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण. वक्फ एक्ट में संशोधन वाला बिल मोदी सरकार 3.0 का अब तक का सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है. पिछले साल 9 जून को सत्ता में आते ही सरकार ने वक्फ कानूनों से जुड़े मसलों पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया था.

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू को फौरन काम पर लगा दिया गया. उनके मंत्रालय ने सऊदी अरब, मिस्र, कुवैत, ओमान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की जैसे देशों में वक्फ मैनेजमेंट पर इंटरनेशनल प्रैक्टिसेस यानी अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं का विश्लेषण किया. कानून मंत्रालय के साथ मिलकर और दिन-रात काम करके ठीक दो महीने के भीतर 8 अगस्त 2024 को वक्फ अधिनियम में संशोधन और मुस्लिम वक्फ अधिनियम को निरस्त करने के लिए विधेयक संसद में लाए गए.

मोदी सरकार की रणनीति
फिर एक सोची समझी रणनीति के तहत अगले पांच महीनों तक इन बिलों पर जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में चर्चा होती रही. बीजेपी के एक सूत्र ने बताया, ‘बीजेपी चाहती थी कि जेपीसी उसके उन सहयोगियों की चिंताओं को दूर करे जिनके पास मुस्लिम वोट बैंक हैं. जैसे कि JDU, TDP, LJP (रामविलास) और RLD.’ इसी बीच पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र में बड़ी जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के इरादे बिल्कुल साफ कर दिए थे. उन्होंने कहा था, ‘वक्फ कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति का नतीजा है और संविधान में इसकी कोई जगह नहीं है.’

कानून में क्या है खामी
मुस्लिम वक्फ एक्ट 1923 एक औपनिवेशिक युग का कानून है जो आधुनिक भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए पुराना और अपर्याप्त हो गया है. वक्फ अधिनियम 1954 में 1995 में संशोधन किया गया था और इसे मुसलमानों के लिए और भी अधिक अनुकूल बनाया गया था, जो कि वास्तव में कानून को दरकिनार करते हुए बनाया गया था. एक टॉप सूत्र ने दावा किया कि कांग्रेस ने 2013 में 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन किया लेकिन वक्फ की कमियों को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया.

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