जस्टिस यशवंत वर्मा से पहले भी हुआ था कैश कांड, नाम के चक्कर में खुल गया जज का खेल! जानें 17 साल पुराना किस्सा

दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम कथित कैश कांड को लेकर इन दिनों लगातार सुर्खियों में बना हुआ था. आरोप है कि जस्टिस वर्मा में अपने सरकारी बंगले के आउटहाउस में करोड़ों रुपये की नकदी रखी हुई थी, जो उनके घर पर लगी आग में जल गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस आरोपों को गंभीरता से लेते हुए जांच बैठा दिया है और उनका दिल्ली से वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया है. हालांकि इस बीच एक और जज का 17 साल पुराना कैश कांड एक बार फिर चर्चा में आ गया है.

यह मामला तत्कालीन पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट जज निर्मल यादव से जुड़ा था, जिन पर 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था. न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करने वाले इस मामले पर आज हाईकोर्ट का फैसला आने वाला है.

कैसे नाम के चक्कर में खुल गया पूरा खेल?
यह घटना 13 अगस्त 2008 की है, जब एक प्लास्टिक बैग में रखे 15 लाख रुपये गलती से जस्टिस निर्मल यादव की जगह हाईकोर्ट की ही दूसरी जज, जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गए थे. यह रकम कथित तौर पर एक ज़मीन सौदे में पक्षपात के बदले रिश्वत के रूप में भेजी गई थी. जस्टिस निर्मलजीत कौर के पीए अमरीक सिंह ने जब यह रकम देखी, तो तुरंत इसकी सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

बात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंची और मामला सीधा चंडीगढ़ पुलिस के पास चला गया. हालांकि, कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन चंडीगढ़ प्रशासक, जनरल (रिटायर्ड) एसएफ रोड्रिग्स ने इसे सीबीआई को सौंप दिया. 28 अगस्त 2008 को सीबीआई ने इस मामले में नई एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की.

17 साल लंबी कानूनी लड़ाई और 300 से ज्यादा सुनवाई
इस मामले में जस्टिस निर्मल यादव के अलावा दिल्ली के होटल कारोबारी रविंदर सिंह भसीन, प्रॉपर्टी डीलर राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह भी आरोपी बनाए गए थे. वहीं, इस केस के एक अन्य आरोपी, हरियाणा के पूर्व एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल की बाद में मौत हो गई थी.

सीबीआई कोर्ट में इस मामले की 300 से ज्यादा सुनवाई हो चुकी है और कुल 76 गवाहों के बयान दर्ज किए गए. हालांकि, इनमें से 10 गवाह मुकदमे के दौरान अपने बयान से पलट गए.

क्या कहना था जस्टिस यादव का?
अपने बचाव में जस्टिस यादव ने कोर्ट में कहा, ‘मैंने कोई अपराध नहीं किया है और पूरे मुकदमे के दौरान मेरे खिलाफ कुछ भी ठोस नहीं मिला.’ हालांकि, सीबीआई ने लगातार इस बात पर ज़ोर दिया कि रिश्वत की रकम जस्टिस यादव के लिए ही भेजी गई थी और यह पूरा मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ था.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा मामला
2009 में सीबीआई ने जस्टिस यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी, जिसे 2010 में हाईकोर्ट ने मंजूरी दे दी. जस्टिस यादव ने इस आदेश को चुनौती दी, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. 2011 में राष्ट्रपति भवन से भी अभियोजन की मंजूरी मिल गई, जिसके बाद सीबीआई ने चार्जशीट दायर कर दी.

अब 17 साल बाद फैसले की घड़ी
चंडीगढ़ की सीबीआई विशेष अदालत इस चर्चित मामले में आज अपना फैसला सुनाने जा रही है. विशेष सीबीआई जज अल्का मलिक ने गुरुवार को दोनों पक्षों की अंतिम बहस सुनने के बाद इस पर निर्णय सुरक्षित रख लिया था.

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