शैलचित्रों की दुर्लभ श्रृंखला का गढ़

हर सभ्यता वक्त की रेत पर अपने निशान छोड़ जाती है, ऐसे ही शैलचित्रों की अनोखी दुर्लभ श्रृंखला रायगढ़ की पहाडिय़ों में बिखरी हुई है, जो सदियां बीतने पर भी धूमिल नहीं हुई है और प्रागैतिहासिक काल से मानव विकास क्रम की कहानियां कह रही हैं। रायगढ़ जिले में हजारों वर्ष पुराने पाषाणकालीन समृद्ध शैलचित्रों का खजाना है, जो न केवल देश एवं प्रदेश में बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। ऐसी दुर्लभ पुरासंपदा हमारी प्राचीन सभ्यता के जीवंत अमूल्य अवशेष है। जिले में आदिम मानवों द्वारा सिंघनपुर, करमागढ़, कबरापहाड़, ओंगना, नवागढ़ पहाड़ी, बसनाझर, भैंसगढ़ी, खैरपुर, बेनिपाट, पंचभैया पहाड़, राबकोब गुफा, सारंगढ़ के सिरौलीडोंगरी जैसे अनेक स्थानों में शैलाश्रय में शैलचित्र उकेरे गए है, जिनमें पशु-पक्षी, आखेट के दृश्य, परम्परा, जीवनशैली, पर्व एवं त्यौहार का चित्रांकन दीवारों पर किया गया है। ऐसे रॉक पेंटिंग विश्व के अन्य देशों फ्रांस, स्पेन, आस्ट्रेलिया एवं मेक्सिको में भी पाये गए हैं। प्रागैतिहासिक काल में आदिम मानव इन सघन एवं दुर्गम पहाडिय़ों में गुफाओं एवं कंदराओं में निवास करते थे और यहां सभ्यता का विकास होता गया। आदिम कुशल चित्रकारों द्वारा बनाये इन शैलचित्रों में उनकी जीवनशैली एवं परिवेश की अनुगूंज सुनाई देती है, जिसकी भावनात्मक अभिव्यक्ति इन रेखाचित्रों के रूप में उभरकर सामने आती है। आदिमानव रंगों के प्रयोग से अनभिज्ञ नहीं थे। यह शैलचित्र हमारे पुरखों द्वारा दिया गया बहुमूल्य उपहार है।

जिले में प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्रों में प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति उत्कृष्ट रूप में अभिव्यक्त हुई है और यह पुरातत्वविदों के लिए अनुकरणीय है। रहस्य एवं रोमांच से भरपूर इन शैलचित्रों में अभी भी बहुत कुछ खोजना शेष है। इन कहानियों को क्रमिकता में समझने की जरूरत है, कि उस काल में जीवन किस तरह का था और रचनात्मकता किस तरह की थी। इनका सही वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर मानव विकास के क्रम की कई तस्वीरें सामने आएगी।

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