शिव तांडव नृत्य में क्रोध ही नहीं आनंद की भी करते हैं बारिश, इसलिए खास है चिदंबरम का नटराज मंदिर …
भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं तो उसे क्रोध का प्रतीक माना जाता है. भगवान शिव दो तरह से तांडव नृत्य करते हैं. पहला जब वो गुस्सा होते हैं, तब बिना डमरू के तांडव नृत्य करते है. लेकिन दूसरा तांडव नृत्य करते समय जब वह डमरू भी बजाते हैं. तो प्रकृति में आनंद की बारिश होती. ऐसे समय में शिव परम आनंद से पूर्ण रहते हैं. नटराज भगवान भोलेनाथ का ही एक रूप है, जब शिव तांडव करते है तो उनका यह रूप नटराज कहलाता है. इन्हीं सब विशेषताओं से परिपूर्ण है तमिलनाडु में चिदंबरम में स्थित नटराज मंदिर. भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक है. भगवान शिव के नटराज मंदिर को चिदंबरम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में शिव मूर्ति की खासियत यह है कि यहां नटराज आभूषणों से लदे हुए हैं. इस मंदिर में नटराज के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है.
अनोखा है मंदिर का परिक्षेत्र
नटराज मंदिर में कांसे से बनी कई मूर्तियां हैं. माना जाता है कि ये 10वीं-12वीं सदी के चोल काल की हैं. दक्षिण भारत के ग्रंथों के मुताबिक चिदंबरम मंदिर उन पांच पवित्र शिव मंदिरों में से एक है, जो प्राकृतिक के पांच महत्वपूर्ण तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है. इस अनोखे मंदिर का क्षेत्रफल 106,000 वर्ग मीटर है. मंदिर में लगे हर पत्थर और खंभे में शिव का अनोखा रूप दिखाई देता है.
सोने-चांदी से बनी है मंदिर की चौखट और शिखर
मंदिर में कुल नौ द्वार और नौ गोपुरम हैं, जो कि सात मंजिला है. इन गोपुरों पर मूर्तियों तथा अनेक प्रकार की चित्रकारी का अंकन है. इनके नीचे 40 फीट ऊंचे, 5 फीट मोटे तांबे की पत्ती से जुड़े हुए पत्थर की चौखटें हैं. मंदिर के शिखर के कलश सोने के हैं.
यहां भगवान शिव नृत्य में जीत गए थे
इस मंदिरों को लेकर एक किवदंती यह है इस स्थान पहले भगवान श्री गोविंद राजास्वामी का था. एक बार शिव सिर्फ इसलिए उनसे मिलने आए थे कि वह उनके और पार्वती के बीच नृत्य प्रतिस्पर्धा के निर्णायक बन जाएं. गोविंद राजास्वामी तैयार हो गए. शिव पार्वती के बीच नृत्य प्रतिस्पर्धा चलती रही. ऐस में शिव विजयी होने की युक्ति जानने के लिए श्री गोविंद राजास्वामी के पास गए. उन्होंने एक पैर से उठाई हुई मुद्रा में नृत्य कर करने का संकेत दिया. यह मुद्रा महिलाओं के लिए वर्जित थी. ऐसे में जैसे ही भगवान शिव इस मुद्रा में आए तो पार्वती जी ने हार मान ली. इसके बाद शिव जी का नटराज स्वरूप यहां पर स्थापित हो गया.