हाथी पर सवार होकर आ रही हैं मां दुर्गा, जानिए कलश स्थापना पूजा विधि व मंत्र ज्योतिषाचार्य पंडित वासुदेव त्रिपाठी से….
आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है, इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर अपने भक्तों के घर पधार रही हैं. ज्योतिष की मानें तो इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं. नवरात्रि के पहले दिन मां शक्ति के उपासक अपने घर पर कलश स्थापना कर मां दुर्गा का आहवाहन करते हैं और नौ दिन तक मां दुर्गा की साधना करते हैं. आइए ज्योतिष मर्मज्ञ पंडित वासुदेव त्रिपाठी से जानते हैं कि, नवरात्रि पर कैसे करें कलश स्थापना, कब है कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त, किन मंत्रों से करें कलश स्थापना और नौ दिन तक किस मंत्र से करें मां दुर्गा की पूजा ?
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 26 सितंबर को हो रही है. इस दिन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 28 मिनट से लेकर 08 बजकर 01 मिनट तक हैं. वहीं इस दिन सुबह 11 बजकर 54 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना बहुत शुभ माना जाता है.
कलश स्थापना विधि व मंत्र
घर के उत्तर पूर्व दिशा में कलश की स्थापना करें. कलश स्थापना से पूर्व उस जगह को अच्छे से साफ-सूथरा कर लें. इसके बाद उसे गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें. अब इस जगह पर मिट्ठी और रेत में सप्तमृतिका मिलाकर एक साथ बिछा दें. कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और सिंदूर का टीका लगाएं. कलश में कलावा बांधे. अब आप जिस स्थाप पर कलश स्थापना करने जा रहे हैं, उसे हाथ को स्पर्श करते हुए मंत्र ‘ऊं भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्रीं, पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृग्वंग ह पृथिवीं मा हि ग्वंग सीः’ बोलें. इसके बाद कलश रखने वाले स्थान पर सप्तधान बिछाते हुए ‘ ऊं धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा, दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि’ बोलें. इसके बाद जहां कलश को स्थापित करते हुए ‘ऊं आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:, पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः’ बोलें. इसके बाद कलश पर ढक्कन लगाएं. ढक्कन में नारियल और चावल भर कर रखें.
कलश पूजन
अब आप कलश पूजन करते हुए ‘ऊं तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः, अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ग्वंग स मा न आयुः प्र मोषीः, अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि, ओम भूर्भुवः स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण. ‘ओम अपां पतये वरुणाय नमः’ मंत्र को बोलते हुए कलश पर अक्षत फूल चंदन चढ़ाएं. इसके बाद आप कलश की पंचोपचार विधि से पूजा करते हुए सभी देवी देवताओं का आहवाहन करें. कलश स्थापना के साथ ही माता की अखंड ज्योति प्रज्जवलित करें. इस दीपक का हमेशा ध्यान रखें कि ये नवरात्रि के दौरान बुझे नहीं.
नवरात्रि पर नौ दिन माता को कौन- कौन सा भोग लगाएं
मां शैलपुत्री-
मां को गाय के घी का भोग लगाना शुभ। इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी-
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाएं।
मां चंद्रघंटा-
मां को दूध से बनी मिठाइयां,खीर आदि का भोग लगाएं।
मां कूष्मांडा-
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा को मालपुए का भोग लगाया जाता है।
मां स्कंदमाता-
पांचवें दिन स्कंदमाता को केले का भोग चढ़ाया जाता है।
मां कात्यायनी-
नवरात्रि के छठें दिन देवी कात्यायनी को हलवा,मीठा पान और शहद का भोग लगाएं।
मां कालरात्रि-
सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा होती है। इस दिन देवी कालरात्रि को गुड़ से निर्मित चीजों का भोग लगाना चाहिए।
मां महागौरी-
माता महागौरी को नारियल का भोग बेहद प्रिय है, इसीलिए नवरात्रि के आठवें दिन भोग के रूप में नारियल चढ़ाएं।
मां सिद्धिदात्री-
माता सिद्धिदात्री को हलवा-पूड़ी और खीर का भोग लगाएं।
नवरात्रि पर मां दु्र्गा की पूजा के दौरान करें इन नियमों का पालन
– नवरात्रि के पूरे दिन व्रत रखना चाहिए। अगर आप किसी कारण से पूरे 9 दिनों तक व्रत नहीं रख सकते तो पहले, चौथे और आठवें दिन व्रत जरूर रखें।
– घर पर नौ दिनों तक मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योति जरूर रखें।
– नवरात्रि पर देवी दुर्गा की प्रतिमा के साथ, मां लक्ष्मी और देवी सरस्वती की प्रतिमा को स्थापित कर 9 दिनों तक पूजन करें।
– मां दु्र्गा को 9 दिनों तक अलग-अलग दिन के हिसाब से भोग जरूर लगाएं। इसके अलावा मां को प्रतिदिन लौंग और बताशे का भोग अर्पित करें।
– दु्र्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें।
– पूजा में मां को लाल वस्त्र और फूल चढ़ाएं।
शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में 9 देवियों के 9 बीज मंत्र
दिन देवी बीज मंत्र
पहला दिन शैलपुत्री ह्रीं शिवायै नम:।
दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
तीसरा दिन चन्द्रघण्टा ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
चौथा दिन कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:।
पांचवा दिन स्कंदमाता ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
छठा दिन कात्यायनी क्लीं श्री त्रिनेत्राय नम:।
सातवाँ दिन कालरात्रि क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
आठवां दिन महागौरी श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
नौवां दिन सिद्धिदात्री ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।